
महाराष्ट्र सरकार द्वारा विकास कार्यों के लिए बंबई उच्च न्यायालय के 16 जुलाई, 2020 के आदेश के खिलाफ अकोला पश्चिम के भाजपा विधायक गोवर्धन मांगिलाल शर्मा ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। इस मामले में शुक्रवार को अकोला नगर निगम ने भी एक कैविएट दाखिल किया है।
अदालत को मामले पर फैसला सुनाने से पहले अपने पक्ष को सुनने के लिए भी कहा जाता है। दरअसल, मामला यह है कि महाराष्ट्र सरकार ने 12 दिसंबर 2017 को शहरी निगमों के क्षेत्र में बुनियादी सुविधाओं के प्रावधान के लिए एक नीति निर्धारित करने वाला एक नियमन जारी किया था।
विकास कार्यों का प्रस्ताव प्राप्त होने के बाद आयोग के प्रतिनिधि की अध्यक्षता में आयोग इसका आकलन करेगा और इसे राज्य सरकार को प्रशासनिक स्वीकृति और धनराशि के वितरण के लिए प्रस्तुत करेगा, और फिर कार्य के लिए धनराशि जारी की जाएगी। 9 सितंबर 2019 को सरकार ने अकोला की नगर पालिका को इस कार्य को पूरा करने की अनुमति दी और 31 मार्च 2021 तक कुल 91 कार्यो के लिए 15 करोड़ रुपये की राशि विशिष्ट कार्यों के लिए नगर निमग को विशेष अनुदान मद के तहत जारी करते हुए इन कार्यों और निधि को 31 मार्च 2021 से पहले समाप्त करने की अनुमति दी थी।
हालांकि, यह काम शुरू नहीं किया गया है और 22 सितंबर 2019 को एक चुनावी बैठक और आचार संहिता लागू की जा रही है। फिर 31 मार्च, 2020 तक राज्य सरकार ने विकास कार्य रोक दिया और 9 सितंबर 2019 के फरमान के तहत तय किए गए 91 कार्यों को रद्द कर दिया, और फिर 16 जुलाई 2020 के फरमान के तहत सरकार को अकोला शहर के लिए 15 करोड़ रुपये में ही 91 के बजाय 176 विकास कार्यों के लिए एक नया सरकारी प्रस्ताव जारी किया।
भाजपा विधायक शर्मा ने 16 जुलाई 2020 को सुप्रीम कोर्ट के सामने विपरीत आदेश को चुनौती देते हुए दावा किया कि सरकार ने घोषित 91 अधिनियमों को रद्द कर दिया था और अन्य कार्यों के लिए देने हेतु नया मंजूरी आदेश दिया। नागपुर पीठ ने विधायक की लिखित याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि यह सरकार का फैसला है। ऐसा लगता है कि अकोला शहर की विकास योजना प्रभावित नहीं होगी और विपरीत सरकारी विनियमन से अधिक ढांचागत कार्य और सुविधाएं उपलब्ध होंगी। इस आदेश के खिलाफ विधायक शर्मा सुप्रीम कोर्ट पहुंचे है।